Ek Gareeb Ladke Ki Dard Bhari Kahani
एक गरीब लड़के की दर्द भरी कहानी - Ek Gareeb Ladke Ki Dard Bhari Kahani
रात का अंधेरा घिर आया था। ठंडी हवा शरीर को चीरती हुई गुजर रही थी, और सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था। दूर कहीं किसी मंदिर की घंटी बज रही थी, और बीच-बीच में कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। सड़क के किनारे फटे हुए कंबल में लिपटा एक नन्हा सा लड़का ठंड से कांप रहा था। उसकी आंखों में नींद नहीं थी, बस एक गहरी उदासी और भूख की पीड़ा थी।
वह लड़का कोई और नहीं, बल्कि सूरज था—एक गरीब घर में जन्मा बच्चा, जिसकी ज़िंदगी में गरीबी और अभावों के सिवा कुछ नहीं था। उसका जन्म एक झुग्गी में हुआ था, जहां चारों ओर गंदगी और तंगहाली फैली थी। मां-बाप मजदूरी करते थे, लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी कभी पेट भरकर खाना नसीब नहीं होता था। जब वह छोटा था, तो मां उसे गोद में लेकर सुलाया करती थी, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा हुआ, उसे समझ आने लगा कि दुनिया कितनी बेरहम होती है।
सूरज के पिता एक ईंट भट्टे पर मजदूरी करते थे, और मां लोगों के घरों में बर्तन मांजने का काम करती थी। दिनभर की मेहनत के बाद भी घर में इतना पैसा नहीं आता था कि ढंग से दो वक्त की रोटी मिल सके। कई बार ऐसा होता कि पूरे परिवार को बिना खाए ही सोना पड़ता। जब सूरज छोटा था, तो वह अपनी मां से पूछता, "मां, हमारे पास पैसे क्यों नहीं हैं?" मां बस उसे सीने से लगाकर कहती, "बेटा, गरीब का नसीब ही ऐसा होता है। लेकिन तू पढ़-लिख जाएगा, तो तेरा नसीब बदल जाएगा।"
लेकिन गरीबी में पढ़ाई भी किसी सपने से कम नहीं होती। सूरज का मन तो पढ़ने का बहुत था, लेकिन स्कूल जाने के लिए किताबें चाहिए थीं, कपड़े चाहिए थे, और सबसे बड़ी बात यह थी कि घर में इतना पैसा नहीं था कि वह पढ़ाई कर सके। फिर भी, वह स्कूल के बाहर बैठकर उन बच्चों को देखता, जो साफ-सुथरे कपड़े पहनकर स्कूल जाते थे। वह सोचता कि काश, वह भी पढ़ सकता, काश, उसकी ज़िंदगी भी अच्छी होती। लेकिन हकीकत उससे बहुत दूर थी।
एक दिन उसके पिता बीमार पड़ गए। मजदूरी करना बंद हो गया, और घर की हालत और खराब हो गई। मां पहले से ही दिन-रात काम कर रही थी, लेकिन अब उसके कंधों पर और बोझ आ गया था। सूरज अब समझ चुका था कि उसे भी काम करना होगा, वरना घर में कोई खाना नहीं खा पाएगा। वह शहर के बाजार में गया और वहां छोटे-मोटे काम तलाशने लगा। कई जगह उसे दुत्कार मिली, कई जगह उसे अपमान सहना पड़ा, लेकिन आखिरकार एक चाय की दुकान पर उसे बर्तन धोने का काम मिल गया।
सूरज अब हर दिन सुबह जल्दी उठता, चाय की दुकान पर काम करता, फिर जो थोड़ा समय मिलता, उसमें स्कूल के बाहर खड़ा होकर पढ़ाई करने की कोशिश करता। उसे यह अहसास था कि अगर वह पढ़ नहीं पाया, तो उसकी ज़िंदगी भी उसके माता-पिता की तरह ही मजदूरी में बीत जाएगी। लेकिन हालात इतने आसान नहीं थे।
एक दिन जब वह दुकान पर काम कर रहा था, तो कुछ अमीर लड़के वहां आए। वे सब महंगे कपड़े पहने हुए थे, हाथ में महंगे फोन थे, और उनकी जेबों में खूब पैसे थे। उन्होंने चाय का ऑर्डर दिया और हंसते-हंसते बातें करने लगे। तभी उनमें से एक लड़के की नजर सूरज पर पड़ी।
"अरे देखो, ये लड़का कितना गंदा है! लगता है नहाता भी नहीं!" एक लड़के ने मजाक उड़ाया।
दूसरा लड़का हंसते हुए बोला, "इसका क्या है, ये तो बस बर्तन धोने के लिए पैदा हुआ है!"
सूरज के हाथ कांपने लगे। उसने कुछ नहीं कहा, बस सिर झुकाकर अपना काम करता रहा। लेकिन अंदर ही अंदर उसकी आंखों में आंसू थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या गरीबी इतनी बड़ी गलती है कि लोग उसका मजाक उड़ाएं? क्या मेहनत करना गुनाह है?
उस दिन के बाद से सूरज और भी टूट गया था। वह समझ गया था कि गरीब होने का मतलब सिर्फ भूखा रहना नहीं होता, बल्कि अपमान सहना भी होता है। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने ठान लिया था कि वह कुछ भी करके अपनी ज़िंदगी बदलेगा।
दिन बीतते गए। सूरज अब दिनभर काम करता और रात में जो भी समय मिलता, उसमें खुद से पढ़ाई करता। उसने पुराने फटे-पुराने किताबों को इकट्ठा किया और धीरे-धीरे अक्षरों को पहचानने लगा। वह अपने मालिक से चाय बनाना भी सीखने लगा, ताकि वह आगे किसी अच्छे ढाबे में काम कर सके और ज्यादा पैसे कमा सके।
एक दिन जब वह दुकान पर काम कर रहा था, तो एक सज्जन व्यक्ति वहां आए। उन्होंने देखा कि सूरज चाय बना रहा है, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग सी चमक थी। उन्होंने उससे पूछा, "बेटा, तुम पढ़ाई क्यों नहीं करते?"
सूरज ने उदास होकर जवाब दिया, "साहब, गरीबी में पढ़ाई नहीं होती। बस पेट भरने की लड़ाई होती है।"
उस व्यक्ति को सूरज की बात ने झकझोर कर रख दिया। वे एक स्कूल के प्रधानाचार्य थे। उन्होंने सूरज से कहा, "अगर मैं तुम्हारी पढ़ाई का इंतजाम कर दूं, तो क्या तुम पढ़ाई करोगे?"
सूरज की आंखों में आंसू आ गए। वह तुरंत उनके पैरों में गिर पड़ा और बोला, "साहब, अगर मुझे पढ़ने का मौका मिला, तो मैं अपनी जान लगा दूंगा।"
उस दिन के बाद सूरज की ज़िंदगी बदल गई। प्रधानाचार्य ने उसे स्कूल में दाखिला दिलवाया, और साथ ही उसकी फीस भी भरी। सूरज अब दिनभर काम करता और रात में पढ़ाई करता। धीरे-धीरे वह पढ़ाई में आगे बढ़ने लगा। उसने मेहनत की, अपने सपनों को सच करने के लिए हर तकलीफ को सहा।
सालों बाद, जब सूरज बड़ा हुआ, तो उसने खुद अपनी मेहनत से एक अच्छी नौकरी पाई। अब वह अपने माता-पिता के लिए एक अच्छा घर खरीद सका था। उसकी मेहनत रंग लाई थी। उसने साबित कर दिया था कि गरीबी कोई अपराध नहीं होती, बल्कि यह तो एक चुनौती होती है, जिसे मेहनत और लगन से जीता जा सकता है।
आज जब सूरज अपनी पुरानी झुग्गी की तरफ देखता है, तो उसे अपना अतीत याद आता है। वह उन दिनों को याद करता है जब वह भूखा सोता था, जब लोग उसका मजाक उड़ाते थे, जब उसने ठंड में कांपते हुए रातें गुजारी थीं। लेकिन आज वह मुस्कुराता है, क्योंकि उसने अपनी तकदीर खुद बदली है।
गरीब होना कोई गुनाह नहीं होता, लेकिन गरीबी को अपनी किस्मत मान लेना सबसे बड़ा गुनाह होता है। सूरज ने गरीबी को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि उसे अपनी ताकत बना लिया। यही वजह है कि आज उसकी कहानी सिर्फ एक दर्द भरी दास्तान नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बन चुकी है।
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